ऐतिहसिक एवं धर्मनिपेक्ष नगर आरंग का संक्षिप्त परिचय
आरंग नगर का इतिहास द्वापर युगीन महादानी राजा मोरध्वज से प्रारंभ होता है | ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण और नरअवतारी आर्य श्री रजा मोरध्वज की दानशीलता की परीक्षा लेने पहुचे | अपने आज्ञाकारी सुपुत्र ताम्रध्वज के शारीर को पराक्रमी सम्राट मोरध्वज और उनकी रानी ने आरा से चीरकर अपनी दानशीलता का परिचय देकर कृष्ण और अर्जुन को हतप्रभ कर दिया था | द्वापर युग में आरा से अपने सुपुत्र के अंग का विच्छेदन करने के कारण इस नगर का नाम आरंग पड़ा |
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से ३६ कि.मी. दूर स्थित यह नगर अपने गर्भ में अनेक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक अवशेषों को छुपाये हुये है | इतिहास
ग्रंथों में वर्णित मांडल देव (भाड़देव) मंदिर, 12-13वीं शताब्दी में निर्मित जैन तीर्थकारों व अन्य जैन मूर्तियां, झनझना महादेव मंदिर, शामियाँ माता मंदिर, बागेश्वर मंदिर, महामाया मंदिर, छिन्न देवी, चंडी देवी, बरगुड़ी पास में स्थित बौद्ध मूर्तियों से अंकित प्राचीन चबूतरा, राधाकृष्ण मंदिर, पञ्च महादेव मंदिर, अनेक शिवलिंग, ( किवदंती है कि काशी (वाराणसी) में जितने शिवलिंग हैं, उनमे से एक कम आरंग में है ), सामान्य खुदाई में प्राप्त ताम्रपत्र, सिक्के, शिलालेख, भग्नावशेष मूर्तियाँ, प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला प्रशिद्ध उर्स इस नगर को पुरातात्विक, ऐतिहसिक व धर्म निरपेक्ष नगरी का दर्जा प्रदान करते हैं | छत्तीसगढ़ की जीवन धरा और मोक्षदायिनी सरिता महानदी के निकट स्थित यह नगर कभी रतनपुर राज्य की छः माहि राजधानी हुआ करता था |
महाविद्यालय का संक्षिप्त परिचय
छत्तीसगढ़ अंचल के प्राचीनतम उच्च शिक्षा संस्थानों में एक इस महाविद्यालय की स्थापना आरंग नगर की सुप्रसिद्ध दानदात्री कृषक महिला स्व. मनियाराबाई गारूडिक द्वारा अपने एकमात्र पुत्र स्व. बद्री प्रसाद गारूडिक की स्मृति में अपनी संपत्ति के दानस्वरूप वर्ष १९६५ में भूतपूर्व सांसद एवं विधायक श्री लखनलाल गुप्ता की अध्यक्षता में बद्री प्रसाद शिक्षण समिति के सञ्चालन अंतर्गत 35 अध्येयताओं से हुई| 9 अगस्त १९८३ को मध्यप्रदेश शासन द्वारा महाविद्यालय का शासकीयकरण किया गया | इस महाविद्यालय को वि. वि. अनुदान आयोग की धारा २ (बी.) व १२ (एफ) की तथा पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर की स्थायी सम्बद्धता प्राप्त है | महाविद्यालय में वर्ष १९७० से एन. सी. सी. एवं वर्ष १९७९ से एन. एस.एस. की इकाइयाँ संचालित है | वर्ष १९८७ से वाणिज्य संकाय में एम. काम. एवं वर्ष १९८९ से कला संकाय अंतर्गत एम. ए. (हिंदी ) व एम. ए. (राजनीती ) की स्नातकोत्तर कक्षाएं संचालित है | शासन के निर्देशानुसार जनभागीदारी स्थानीय प्रबंधन समिति द्वारा वर्ष २००० से विज्ञान संकाय संचालित है | सत्र २००८-०९ से इसे शासन द्वारा संचालित किया जा रहा है |