ऐतिहसिक एवं धर्मनिपेक्ष नगर आरंग का संक्षिप्त परिचय
आरंग नगर का इतिहास द्वापर युगीन महादानी राजा मोरध्वज से प्रारंभ होता है | ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण और नरअवतारी आर्य श्री रजा मोरध्वज की दानशीलता की परीक्षा लेने पहुचे | अपने आज्ञाकारी सुपुत्र ताम्रध्वज के शारीर को पराक्रमी सम्राट मोरध्वज और उनकी रानी ने आरा से चीरकर अपनी दानशीलता का परिचय देकर कृष्ण और अर्जुन को हतप्रभ कर दिया था | द्वापर युग में आरा से अपने सुपुत्र के अंग का विच्छेदन करने के कारण इस नगर का नाम आरंग पड़ा | छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से ३६ कि.मी. दूर स्थित यह नगर अपने गर्भ में अनेक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक अवशेषों को छुपाये हुये है | इतिहास
शासकीय बद्री प्रसाद कला, वाणिज्य एवं विज्ञानं महाविद्यालय, आरंग राजा मोरध्वज की ऐतिहासिक नगरी आरंग का एकमात्र शासकीय महाविद्यालय है वर्तमान परिपेक्ष्य में महाविद्यालय शिक्षा अत्यंत रोमांचकारी एवं चुनौतीपूर्ण है | युवा समूह के लिए जीवन को दिशा और दशा तय करने के लिए महाविद्यालयीन परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है | विद्यार्थी शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, साहित्यिक एवं रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं | इस हेतु एक साथ सशक्त मंच उपलब्ध कराना महाविद्यालय का एकमात्र लक्ष्य है | इस परिपेक्ष्य में एन. एस. एस., एन. सी. सी., रेडक्रास आदि की इकाइयाँ वर्षों से सतत रूप से संचालित है |